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    इतिहास

    1965 मे ही कोण्डागांव राजस्व अनुविभाग घोषित किया गया।कोण्डागांव रियासत काल में पूर्व में हटिया फिर शामपुर तथा बाद में सोनाबाल परगना के अंतर्गत लिया जाता था। कोण्डागांव का विकास क्रमश: तेजी से हुआ और कस्बे से शहर बना। पहले यह आदिम जाति पंचायत के अंतर्गत था तत्पष्चात 1975 में नगरपालिका परिषद् की स्थापना हुई, नगर में विधाओं में प्रगति आई है जिससे बेलमेटल शिल्प , लौह शिल्प , प्रस्तर शिल्प , मृतिका शिल्प लोक कला चित्र, काश्ठ, बांस, कौड़ी शिल्प और बुनकर शिल्प का यथेश्ट विकास हुआ।बेलमेटल शिल्प से बस्तर को विश्व स्तर पर ख्याति दिलाने का श्रेय कोण्डागांव के कलाकारों को जाता है। सांस्कृतिक क्षेत्र में सांस्कृतिक संस्थाएं स्थापित हुई एंव साहित्य संगीत, अभिनय कला के विकास का पथ प्रशस्त हुआ। इसके अतिरिक्त शासन की विभिन्न योजनाओं को भी इसके माध्यम से प्रचार मिला। वर्श 1984 में शासन द्वारा एक महाविधालय की स्थापना की गई।15 अगस्त 2011 को छत्तीसगढ़ के माननीय मुख्यमंत्रीजी ने इसके विकास को देखते हुए इसे राजस्व जिला घोषित किया। निश्चय ही जिला निर्माण से कोण्डागांव जिला छत्तीसगढ़ का एक आर्दश जिला बनेगा एवं ख्याति अर्जित करेगा। ( उक्त इतिहास सर्व श्री टी.एस. ठाकुर,सुरेन्द्र रावल, उजियार देवांगन, हरिहर देवांगन, महेष पाण्डे, कोतवाल सुकालू, गोपाल पटेल एवं खेम वैश्णव से प्राप्त जानकारी के अनुसार लिया गया है।)

    जिला एवं सत्र न्यायालय कोण्डागांव

    जिला एवं सत्र न्यायालय कोण्डागांव का शुभारंभ 23 अक्टुबर 2013 को श्री शिव मंगल पाण्डे जिला एवं सत्र न्यायाधीश बस्तर द्वारा किया गया। जिला कोण्डागांव के प्रथम सत्र न्यायाधीश श्री विनय कुमार कश्यप बने।

    व्यवहार न्यायालय

    सिविल जिला कोण्डागांव के अंतर्गत व्यवहार न्यायालय नारायणपुर एवं व्यवहार न्यायालय केशकाल शामिल है। जहां प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी न्यायाधीश कार्यरत है।